Sunday, October 9, 2011

गलतफ़हमी


                (1)
एक शहर था बड़ा सुन्दर 
और थी सुन्दर एक नारी,
बेचारी,
अकेली थी, अनजान था शहर
आठो पहर,
जंग पर गए अपने पति को याद करती थी
उस पर दिलो जान से मरती थी
ब्याह को  दो वर्ष ही बीते थे
पर बाकियों की तरह न कोई सुभीते  थे 
ससुराल नहीं था, पति कहीं था |
एक उसकी तस्वीर
और आँखों का नीर 
ये दोनों ही अकेलेपन में
उस वीरान से वन में 
साथी थे
और उम्मीद में पति के पाती थे |
विअसे तो पति शुरू शुरू में अपनी प्रियतमा को 
पत्र में अपना हाल चल बयां करता था 
पत्र डाकिया पढता था 
क्योंकि वो नारी पढने में समर्थ न थी 
वो सुनती थी डाकिया सुनाता था 
पति का लिखा एक एक शब्द 
उसके दिल को छू जाता था |
वीरानियाँ मिट सी जाती थी 
मुखमंडल खिल जाता था|


            (२)
पर इस बार कई महीने बीत गए थे 
न पति आये थे,
न उनके पत्रों का ठिकाना था 
दिन रात की बेचैनी से
उसका दुश्वार सोना खाना था |
एक दोपहर जेठ की थी 
पति की याद में लेती थी,
किसी ने द्वार पर दस्तक दी
डाकिया आया था
पत्र लाया था
वो पत्र सुनने को दौड़ी 
डाकिया ने सुनाया-
तुम्हारा पति कल वापस आ रहा है
तुम्हारे लिए ढेरों खुशियाँ ला रहा है |

इतना सुनते ही नारी की ख़ुशी की सीमा नहीं थी 
कौन कह सकता था की वो हँस रही थी या रो रही थी 
आँखों में आंसू अधरों पर मुस्कान थी 
खुश बहुत पर किस्मत से अनजान थी  |
पत्र को दिल से लगाया, डाकिये को बोली 
रुक अभी आती हूँ 
तुझे भी इस ख़ुशी का हिस्सा बनती हूँ
भीतर जाकर, कुछ धन  लाकर 
डाकिए को दिया 
और उसे विदा किया 

             (३)
पति कल आयेंगे , मैं उन्हें देख पाऊँगी 
उन्हें अपने हाथो से बना कर खिलाऊंगी|
ये रात तो सदियों से भी लम्बी थी 
पल पल में उम्र सी निकलती थी
अगले दिन उसे एक चिंता सताने लगी 
उनके आने की घडी नज़दीक आने लगी
पर कैसे करूंगी उनका स्वागत की खुश होंगे वो
फिर याद आया उसको की
वे शौक से शराब पीते हैं , पी कर खुश हो जाते हैं
मुस्काते हैं, इठलाते हैं |
तो क्यों न मैं भी उनको नजराना शराब का दूं
उनकी मुस्कान को देखूं |


            (४)
गयी और एक  बोतल शराब ले आई 
फिर सोचा की पति इतने दिनों बाद आयेंगे
आज उनकी मैं उनके साथ जियूंगी 
आज उनकी ख़ुशी के लिए मैं भी
उनके साथ पियूंगी |
ऐसा सोचते हुए उसने दो ग्लास और बोतल मेज़ पर रखे
और सोचा थोड़ी वो अभी पी कर देखे 
होती कैसी है, आज तक नहीं पी
ऐसा न हो की उनके सामने न पी पाऊँ
दोनों ग्लास भर लिए 
फिर एक से थोड़ी पी, कुछ कमी लगी 
कहा बर्फ तो है नहीं 
अभी लाती हूँ
जाम को और अच्छा बनाती हूँ|
वो निकल गयी बर्फ लाने
इतने में पति आ गया घर में |
पहला नज़ारा उसने देखा 
,एज पर शराब की बोतल थी 
और दो ग्लास में शराब रखी
एक ग्लास आधा खाली था
और उस पर नाशन होठों की लाली का था 
उसकी समझ में कुछ और आया 
मन में पत्नी को बदचलन बेवफा बताया
उसे लगा की यहाँ कोई और आता है
और उसका इससे कोई गलत नाता है
पति तिलमिलाया, बाहर आया 
और आकर चला गया
पत्नी को हमेशा के लिए अकेला छोड़ दिया

                 (५)
पत्नी इन सब से अनजान, 
वही धुन वही जान लेकर
बर्फ लेकर लौटी 
देखा किसी के पैरों के निशान 
किसी के आने की पहचान 
उनकी खुशबू छाई थी
पर उनकी झलक नहीं दिकाही दी
बाहर आकर पड़ोसियों से पूछा
क्या वो आये थे?
उत्तर मिला आये भी और चले भी गए
इतना सुनकर वो दौड़ी 
पता नहीं क्या हुआ क्यों चले गए |
आंसुओं की बौछार हो गयी , मानो
जेठ में बारिश मूसलाधार हो गयी 
इधर खोजती, उधर खोजती 
पति को आवाज़ लगाती 
रोती बिलखती सुध खो जाती
फिर चेतना पाती तो फिर इधर उधर 
देखती भरी आँखों से
पूछती ज़र्रों से, पेड़ों से, पेड़ों की शाखों से 

                 (६)
आपको आते जाते किसी चौराहे पे
वो नारी 
किस्मत की मारी 
मिल जाये, तो,
बता देना उसको
की वो अब नहीं आयेंगे
और देखना उन आँखों के रंग नए 
और सोच लेना की
छोटी सी ग़लतफहमी जला देती है 
ऐसे मोड़ पर ला देती है 
जब पुकार भी मर कर रह जाए
हर गली में नदियाँ अश्कों की बह जाएँ


---vishal khare 'uudhou' 
    BBA. LLb first year