Ye kavita maine tab likhi thi jab main class 9th me tha..
26 जुलाई मुंबई हमलों की बरसी पर मुझे उन सर्प तुल्य आंतकियों पर हंसी अ रही थी की ये आते हैं हमारे भीतर खौफ फ़ैलाने
पर इन्हें समझाए कौन कि सब कुछ सह लेते हैं हम और डर के साए को कुचल कर चलते रहते बस चलते रहते.
यही सन्देश है यह उन आतंकवादियों के नाम
ये हिन्दोस्तां है कातिलों , पड़ा है पाला हिन्दोस्तानियों से ,
खूब किये भूकंप मगर तुम हिला सके न ये दिल शेर के --
दिल शेर के हैं हमारे , इतने धमाकों में मानती हमारे यहाँ दिवाली ,
गम ने इतने दे सकोगे जितनी हैं खुशियाँ हमारी --
खुशियाँ हमारी दर्द में तुमने बदलनी चाही , गम का मंज़र पैदा किया खूब की तबाही ,
पर देख ऐ बुजदिल ये जिगर हैं सिंह के , बेखोफ हैं सब भूल चुके इतनी बड़ी त्रासदी
इतनी बड़ी त्रासदी की तुमने मगर , क्या मिला इतने मासूमो की जान लेकर ,
कितनी ख़ुशी मिली तुम्हे इतने से हाहाकार में , नरक भी नसीब नहीं होगा इतनी बददुएं पाकर ---
इतनी बददुएं पाकर तुम खुदा को मुंह न दिखा पाओगे
कितनो को तुमने मारा ज़रा इसका हिसाब बता दो
नहीं उखाड़ सके हमारी जड़ का एक भी बाल,
'हम हुए सफल' क्या तुम ये सोचते हो ?
तुम ये सोचते हो की खोफ पैदा कर सकोगे हमारे दिलों में
अरे! बुजदिलों की तरह पीठ पीछे करते हो वार
सामने से लड़ सको तो ये बता देंगे ये हम तुम्हे
की क्यों इतने गर्व से कहते हैं हम 'मेरा भारत महान '!!
श्री राधे ******************
विशाल ---' ऊद्धौ '
Friday, February 12, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment