This poem brought 1st award to me after. i dedicated it to my closest friend 'kavi kanhaiya'.
you guess out the meaning if possible for you.
Laya baddha kavita
रात के अँधेरे से कांपते हैं जो लोग, दिन में छायें की तलाश कर जाते हैं !
धूप में रहने से घबराता दिल है और थोड़ी ही देर में बीमार पड़ जाते हैं !
कोई तो ये कह दो उन भद्र लोगों से की रात में ढूँढ लें जाकर के छाँव को
नहीं होते छायेंरे अंधियारे में कभी ये तो तेज़ धूप के उजियारे में आते हैं.!!
पर,
बोले वो इक दिन की छाँव मिलती ही नहीं , ढूंढ लूं जाकर के दिन में या रात में. !
चलते चलते थक गया दिल है और कदम भी डगमगाने लगे साथ में !
सुख का कहीं भी नामोनिशां नहीं दुःख ही दुःख मिलते हैं हर बात में !
धूप ही धूप मिली कहीं न छाँव है, काश ! मिल जाये मुझे मौत सौगात में !!
मैंने कहा --
धूप - धूप करता है, छाँव के लिए मरता है, बढ क्यों न चल तू अपने सफ़र पर !
धूप छाँव की तू फिकर न कर चल रोध -अवरोध छाहें आये डगर पर !
धूप से तू लड़ चल आगे तू बढ चल , छोड़ जा अपने निशां इस ज़मीन पर !
परम अनुभूति सुख की तू पायेगा , मात्र आशियाने में अपने ही घर पर !
दुःख सिखाता हमे चलते चलो जिंदगी में कहीं मीत रोके बिना अपने पाँव को !
तेज़ लहरों से लड़ छुका हो जो नाविक वही तो पार लगता है नाव को !
पड़ाव आते ही ठहर जाती जिंदगी, फिर आगे बदने का नाम नहीं लेती !
इसीलिए हमने नाता जोड़ा धूप से और कर दिया दूर इन नज़रों से छाँव को !!
और अंत में--
सुख भी उसको है दुःख भी उसको है , अर्पण उसे सब जिसका चमन है !
माधव की गीता सुन जीता हूँ निशदिन परवाह छोड़ी सब अब चैनोअमन है !
झेली जिस जिस ने मेरी जे कविता , उन भद्र भगिनी और भैया को नमन है !
लिखी जिसने और कही मेरे मुख से , ‘Å/kkS* परम मित्र कवी कन्हैया को नमन है !!
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